किशनगंज/टेढ़ागाछ/ विजय साह
बिहार सरकार ने दावा किया था कि बिहार वापस लौटने वाले सभी प्रवासियों को रोजगार देंगे। लेकिन मंगलवार कई प्रखंड के कई पंचायतों से प्रवासी फिर से दूसरे प्रदेश जाने को मजबूर हैं।
टेढागाछ प्रखंड क्षेत्र के मंगलवार को खनियाबाद पंचायत के भेलागोढ़ी से लगभग 45 मज़दूर को पंजाब से आये लग्जरी बस में सरदार ने मजदूरों को लेकर चले गये। बताते चले कि कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण काम बंद होने और आर्थिक संकट झेलने के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी वापस अपने घर आ गए हैं। राज्य सरकार ने उन्हें रोजगार देने की बड़ी-बड़ी बातें की लेकिन हकीकत अब सामने आ रही है कि प्रवासियो को उनके गांव में ही काम नहीं मिल रहा है। इससे उनके सामने अब फिर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इससे परेशान होकर वे फिर अपना घर-बार छोड़कर दूसरे प्रदेशों की ओर रुख करने लगे हैं।
सरकार ने कहा-बनाएंगे आत्मनिर्भर, नहीं मिल रहा रोजगार
कोरोना संकट में दूसरे राज्यों से वापस आए मजदूरों की हुई खातिरदारी के बाद भी रोजगार के लिए शासन-प्रशासन द्वारा दिए गए अवसर उन्हें लुभा नहीं सके। बड़ी उम्मीद थी प्रवासी मजदूरों को गांव-घर में ही रोजगार उपलब्ध कराकर ‘आत्मनिर्भर’ बनाया जाएगा। खासकर मनरेगा के तहत काफी संख्या में रोजगार देने की योजना बनाई गई है। 12.50 लाख से अधिक कार्य दिवस अब तक सृजित किए जा चुके हैं। जबकि मनरेगा में प्रवासियों की दिलचस्पी का आलम यह है कि क्वारंटाइन सेंटरों पर ठहरे श्रमिकों में से कुछ ने ही जॉब कार्ड बनवाया है।
किसान-मजदूरों को पंजाब से मिल रहा बुलावा, लौट रहे वापस
पंजाब के संगरूर में धान की रोपाई के लिए मजदूरों की घोर कमी हो गई है। वहां के किसान मजदूरों की वापसी के लिए मेट के सहारे गांव-गांव बस भेज रहे हैं। मंगलवार को टेढ़ागांछ प्रखंड के खनियाबाद से मजदूरों को लेने के लिए बस भेलागोरी गांव पहुंची।
वहां से अजय पासवान व अजय सिंह के नेतृत्व में 45 मजदूर पंजाब के लिए दोपहर में बस से रवाना हुए। बताया कि चाल्लीस-पैतालीस मजदूर जा रहे हैं। धान रोपाई के बाद सभी लोग वापस गांव लौट आएंगे।
घर का चूल्हा होने लगा बंद, लौटना पड़ रहा दूसरे प्रदेश
इंटर पास कर रोटी की तलाश में निकले टेढ़ागाछ के भेलागुड़ी गांव के अजय कुमार ने बताया कि वह आगे की पढ़ाई करना चाहता है। लेकिन, पिता व भाई को काम मिलना बंद हो गया है। घर में चूल्हा बंद होने लगा तो धान रोपाई कर पैसा कमा घर चलाने का फैसला लिया। इसीलिए पंजाब जा रहे हैं।
सुबोध कुमार सिंह, अमरेंद्र पासवान ने बताया कि लॉकडाउन में राजस्थान से गांव आ गए थे। अब तक गांव में एक दिन भी काम नहीं मिला। पैसे के अभाव में बीमार पिता का इलाज भी नहीं करा पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में परदेस जाने के सिवा कोई उपाय नहीं है। कुछ लोगों ने पूछा कि कोरोना से कैसे बचोगे तो मजदूरों का कहना था कि मुसीबत आने पर जीने-मरने की चिंता नहीं होती।
गौतम कुमार सिंह का कहना था कि लोग कहते थे कि मनरेगा में काम मिलेगा, लेकिन जो काम होता है उसे मुखिया जी मशीन से करवाते हैं। हम गरीब मजदूरों को काम नहीं देते। इसी क्रम में पवन कुमार सिंह का कहना था कि बच्चों को टयूशन पढ़ाते थे। अब उससे काम नहीं चल रहा है। इसलिए पंजाब के संगरूर जिला जा रहे हैं।
दो सौ से अधिक मजदूर ले जा चुके पंजाब
पंजाब से बस लेकर आए चालक संगरूर निवासी जगदीप सिंह ने बताया कि अभी तक दो सौ से अधिक मजदूरों को पंजाब ले जा चुके हैं। यह चौथी खेप है, जब किशनगंज जिले के टेढ़ागांछ से मजदूर ले जा रहे हैं। डेढ़ लाख रुपये में संगरूर पंजाब से किराया निर्धारित है। मजदूरों ने बताया कि मेट हम सभी को चाय-नाश्ता कराते पंजाब ले जाएंगे। वहां पहुंचने पर अग्रिम भुगतान करेंगे। इसे घर भेजेंगे।
बस से रवाना होते ही स्वजनों के छलके आंसू
मजदूर बस में बैठकर जैसे ही रवाना हुए उनके स्वजनों के आंखों में आंसू झलक आए। इसके साथ ही कुछ लोग एक दुकान पर खड़े थे। यह देख वे भी अपने आंसू रोक नहीं पाए। सभी कह रहे थे कि पेट के खातिर परदेस जाना मजबूरी है। यहां रहकर तो परिवार चलाना भी मुश्किल है।
कम मजदूरी है प्रवासियों की उदासीनता की वजह
मनरेगा में श्रमिकों की दिलचस्पी कम होने की मुख्य वजह कम मजदूरी होना बताया जा रहा है। मनरेगा में अभी मजदूरों को प्रतिदिन 194 रुपये मजदूरी मिल रही है। हालांकि इसे बढ़ाकर 206 रूपये किए जाने की तैयारी चल रही है। वहीं साल में सौ दिनों तक काम की जगह दो सौ दिन किए जाने की तैयारी है। बावजूद इसके प्रवासी रोजगार में अनिश्चितता मानकर अपने पुराने जॉब की ओर भाग रहे हैं।