हिन्दू मंदिर और धार्मिक संस्थाओं को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए केन्द्रीय कानून बने -विहिप 

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देश /डेस्क

विश्व हिंदू परिषद की केंद्रीय प्रन्यासी मंडल की बैठक में अवैध मतान्तरण पर रोक हेतु केन्द्रीय कानून व मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति हेतु पारित दो प्रस्ताव किए गए हैं । बीएचपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री विनोद बंसल द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया गया कि विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय प्रन्यासी मण्डल व प्रबंध समिति का स्पष्ट अभिमत हैं कि हिन्दू मंदिर और धार्मिक संस्थाओं को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाना चाहिए। भारत में मंदिर हिन्दू समाज के लिये सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक गतिविधियों तथा इसकी चिरंजीवी शक्ति के केन्द्र रहे हैं। आस्थावान हिन्दू वहां जाकर यथाशक्ति समर्पण करते हैं ताकि मंदिरों तथा मंदिरों के द्वारा चलने वाली संस्कारक्षम शिक्षण संस्थाओं स्वास्थ्य सेवाओं, उत्सवों तथा धार्मिक-सामाजिक गतिविधियों को व्यवस्थित ढंग से चलाया जा सके। इसलिए नित्य गतिविधियों को संचालित करने के साथ ही मंदिर आपातकाल में भी समाज का सहयोग करने में आगे रहते हैं।उन्होंने कहा कि विडंबना यह है कि देश के अनेकों ऐसे समृद्ध मंदिरों को सरकार अधिग्रहीत कर लेती है और उनकी धन-संपदा को मनमाने ढंग से व्यय करती है। यहां तक कि मंदिरों के धन का उपयोग अहिन्दू कार्यों व हितों को पूरा करने में खर्च किया जाता है।






हिन्दू धार्मिक संस्थाओं पर ब्रिटिश काल से ही नियंत्रण चला आ रहा है। हिन्दू मंदिरों और धार्मिक संस्थाओं पर नियंत्रण करने हेतु Madras Hindu Religious Endowments Act, 1926 में बनाया गया था। इस कानून के आधार पर उनका प्रबंधन और प्रशासन ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथ में ले लिया था। यह भी ध्यान नहीं रखा गया कि हिन्दुओं के दान का पैसा हिन्दू धर्म सम्मत कार्यों पर ही खर्च किया जाए। अभी भी उस काले कानून का अनुसरण करके मंदिरों का अधिग्रहण हो रहा है। जबकि मंदिरों को लेकर चिदम्बरम नटराज मंदिर मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि सरकारों को इन्हें अपने नियंत्रण से मुक्त कर देना चाहिए।






श्री बंसल ने कहा कि अब समय आ गया कि हिन्दू मंदिरों और अन्य धार्मिक संस्थाओं के संचालन के संबंध में व्यापक विचार-विमर्श हो। मंदिर प्रबंधन के नये ढांचे में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। नये ढांचों को तय करते हुए मंदिर की परम्पराओं, अनुवाशिक व्यवस्थाओं, अर्चक और मंदिर की आय पर निर्भर रहने वाले अन्य वर्गों की भूमिका और भक्तों की सहभागिता को ध्यान में रखना होगा। श्री बंसल ने कहा कि सरकार की भूमिका मंदिरों के मालिक की नहीं हो सकती। सरकार और न्यायालय आवश्यकता पड़ने पर कुछ न्यूनतम आवश्यक भूमिका निभा सकते हैं। वह भूमिका क्या हो और कितनी हो, इस पर संबंधित महानुभावों को विचार करना होगा।हिन्दू समाज की विविधताओं को देखते हुए सभी मंदिरों के प्रबंधन में कोई एक सा ढांचा नहीं हो सकता। अलग-अलग परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए दिशा दर्शक बिन्दु तय किए जा सकते हैं। अब इस बारे में कदम तेजी से बढ़ाना आवश्यक है।श्री बंसल ने कहा किविश्व हिन्दू परिषद केन्द्र सरकार से अपील करती है कि एक केन्द्रीय कानून बनाकर हिन्दू मंदिरों और धार्मिक संस्थाओं को हिन्दू समाज को सौंप दे ताकि संत और भक्त इनकी धार्मिक एवं प्रशासनिक व्यवस्थायें तथा वहां की समाजोन्मुखी एवं संस्कारक्षम परम्पराओं को अक्षुण रख सकें। हम हिन्दू समाज से भी अपील करते हैं कि वह मंदिरों का पावित्र्य और कालोचिन परम्पराओं की रक्षा करे तथा मंदिरों की सेवा संस्कार क्षमता बढ़ाने में सहयोग करे।






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