राजेश दुबे
दिल्ली देश की राजधानी है ।कहते है दिल्ली में देश का दिल बसता है और दिल्ली दिलवालो की है ।लेकिन पिछले 70-75 दिनों में इसी दिल्ली ने देश के लाखो नागरिकों का दिल तोड़ने का ऐसा काम किया कि पूरा देश आंसुओ के सैलाब में डूब गया ।
कोरोना महामारी के दौरान उसी दिल्ली से ऐसी ऐसी भयावह तस्वीरें सामने आई कि देखने वालो के रोंगटे खड़े हो गए । बेटी पिता को लेकर अस्पतालों का चक्कर लगाते लगाते थक गई लेकिन अस्पताल में उसे जगह नहीं मिली तो कहीं लाशों के बीच मरीजों का इलाज होते हुए भी देश ने देखा ।
आज जब लिख रहा हूं उस समय दिल्ली में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ कर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 28936 पहुंच चुकी है और आंकड़ों के मुताबिक अभी तक बीमारी से 812 की मौत हो चुकी है ।
दिल्ली ही नहीं देश के अन्य राज्यो में भी आंकड़ा बढ़ रहा है लेकिन दिल्ली की चर्चा इस लिए क्योंकि सारी मर्यादाओं को पार करते हुए दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल कहते है कि दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के लोगो का इलाज होगा किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति का इलाज नहीं किया जाएगा ।
दिल्ली में देश के कई राज्यो के नागरिक निवास करते हैं ,कोई सरकारी नौकरी करता है तो कोई व्यापार करता है इनमें से हजारों लोग ऐसे होंगे जिनके पास अभी तक दिल्ली का स्थाई प्रमाण पत्र मौजूद नहीं होगा ।
यही नहीं कई राज्यो की सीमा दिल्ली से लगती है । इन सबके बावजूद मुख्य मंत्री के संवैधानिक पद की गरिमा को दरकिनार करते हुए यह कह देना की दिल्ली के अस्पताल सिर्फ दिल्ली के लोगों के लिए खुले रहेंगे ना सिर्फ मुख्य मंत्री के पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ है बल्कि देश की एकता को भी खंडित करने वाला है ।
कश्मीर से कन्याकुमारी – केरल से गौहाटी तक यह देश एक है और देश के संसाधनों पर सभी का बराबर अधिकार है ।दिल्ली के अस्पतालों पर जितना अधिकार दिल्ली के लोगों का है उतना ही अधिकार पूर्वोत्तर के हमारे भाईयो का इस लिए दिल्ली के मुख्य मंत्री को कुछ भी बयान देने से पहले यह सोचना चाहिए कि देश संविधान से चलता है और संविधान ने देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किया है ।
अंत में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जन्म खुद हरियाणा में हुआ और वो दिल्ली के मुख्य मंत्री बन सकते है लेकिन विडंबना देखिए कि हरियाणा वाले दिल्ली के अस्पतालों में इलाज नहीं करा सकते ये अपनी खासी का इलाज बेंगलुरु में जा कर करवाए तो ठीक लेकिन कोई दिल्ली से बाहर का आदमी दिल्ली में इलाज करवाया तो अनुचित ।ऐसी दोहरी नीति आज से पहले ना कभी सुनी गई थी और आगे भी शायद देश के किसी अन्य राज्य में सुनने को ना मिले ।जिस देश की संस्कृति रही है दुश्मन देशों के नागरिकों के भी इलाज करने की ,इस बीमारी के दौरान हिंदुस्तान ने सैकड़ों देशों को दवा भेजा यहां तक कि कई पड़ोसी देशों को मुफ्त में दवा भेजी गई ।उसी देश में अपने ही देश के नागरिकों से दोयम दर्जे का व्यवहार सीखना हो तो कोई मुख्य मंत्री केजरीवाल से सीखे ।