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13 जून 1999, जब भारतीय सेना ने तोलोलिंग की पहाड़ी फ़तह कर फहराया था तिरंगा 

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डेस्क /न्यूज लेमनचूस

कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के लिए सबसे अहम तोलोलिंग की पहाड़ियों पर वापस जीत हासिल करना था। इस लड़ाई की शुरुआत पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा भारतीय पोस्टों पर अवैध तरीके से घुसपैठ करके अपने ठिकाने बनाने के साथ ही शुरू हुई थी। भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध 3 मई 1999 से शुरू होकर 26 जुलाई 1999 के दिन तोलोलिंग समेत कारगिल की अन्य पहाड़ियों पर भारतीय सेना की जीत के साथ खत्म हुई। 23 साल पहले 12 जून की रात को भारतीय सेना ने ऑपरेशन करके तोलोलिंग की पहाड़ी पर जीत हासिल करके 13 जून की सुबह तोलोलिंग की पहाड़ी पर तिरंगा फहराया था।  






कारगिल की पहाड़ियों में घुसपैठ की सूचना 3 मई 1999 के दिन भारतीय सैनिकों को पहली बार मिली थी। 14 मई 1999 के दिन पाकिस्तानी घुसपैठियों की मौजूदगी की सूचना मिलने के बाद कैप्टन सौरभ कालिया अपने 4 जाट रेजिमेंट के 5 जवानों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखा राम, मूला राम व नरेश सिंह के साथ सामरिक रुप से महत्वपूर्ण काकसर के पास बजरंग पोस्ट की तरफ निकल पड़े थे। लेकिन भारी बर्फबारी के कारण सभी जवान जब अगले दिन 15 मई को बजरंग पोस्ट पर पहुंचने वाले थे, तभी घात लगाकर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उन पर हमला कर दिया। भारतीय सेना के जवानों ने तुरंत जवाबी कार्रवाई में फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन थोड़े ही देर के बाद उनकी बंदूकों में गोलियां खत्म हो गई। जिसके बाद पाकिस्तानी घुसपैठियों ने सभी जवानों को बंधक बना लिया था।






15 मई के दिन जब 4 जाट रेजिमेंट के जवान वापस अपने कैंप पर लौटकर नहीं आए, तो कैप्टन अमित 30 जवानों की टीम के साथ उन्हें ढूंढने के लिए बजरंग पोस्ट की तरफ निकल पड़े। जब उनकी टीम बजरंग पोस्ट के पास पहुंची तो कैप्टेन अमित को इस बात का आभास हुआ कि पाकिस्तानी घुसपैठिया बड़ी संख्या में घात लगाकार बैठे हैं। ऐसे समय में उन्होंने अपनी टुकड़ी को एक सुरक्षित स्थान से मोर्चा संभालाने का आदेश दिया, जिससे नीचे कैंप तक पाकिस्तानी घुसपैठियों की सूचना पहुंच सके। लेकिन साहस के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों की गोलीबारी का जवाब देते हुए कैप्टन अमित 17 मई के दिन शहीद हो गये थे। वहीं पाकिस्तान ने सौरभ कालिया समेत 5 जवानों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखा राम, मूला राम व नरेश सिंह का शव क्षत-विक्षत अवस्था में भारत को सौंपा था। सभी जवानों के शव को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि पाकिस्तान ने कितने बर्बर तरीके से यातनाएं दी थी। 

तोलोलिंग की पहाड़ी पर विजय 


एक लंबे संघर्ष के बाद तोलोलिंग की पहाड़ियों को दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराकर तिरंगा फहराने की जिम्मेदारी 2 राजपूताना राइफल्स को दी गई थी। इस पूरे टुकड़ी में 10 जवान शामिल थे। उस ऑपरेशन में जिंदा बचे कमांडो दिगेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि आदेश मिलने के बाद 211 किलोमीटर दूर कुपवाड़ा में तैनात 2 राजपूताना राइफल्स 1 जून 1999 के दिन द्रास सेक्टर पहुंची थी। जिसके बाद जवानों ने दो दिन तक इलाके की रैकी की थी। 3 जून की सुबह करीब साढ़े आठ बजे द्रास सेक्टर के गुमरी में सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक के पास सैनिकों का सम्मेलन लगा हुआ था। जिनमें सभी सेक्शन कमांडरों के एक तरफ बैठाया और बाकी जवानों को रेस्ट करने को कहा गया। सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने उस दौरान कहा कि मुझे ऐसा सेक्शन कमांडर चाहिए जो तोलोलिंग पहाड़ी पर जीत का तिरंगा फहरा सके। जिसके बाद सभी सेक्शन कमांडरों ने तोलोलिंग पहाड़ी पर हमला कर उसे पाकिस्तानी फौज से कब्जे मुक्त करवाने का अपना-अपना प्लान बताया।






लेकिन उन्हें कोई प्लान पंसद नहीं आया। जिसके बाद वीपी मलिक ने कहा कि कोई पुख्ता प्लान बताओ, जिसके सफल होने की उम्मीद ज्यादा हो। जिसके बाद दिगेंद्र कुमार सिंह ने अपना प्लान बताते हुए कहा कि दुश्मन तोलोलिंग पहाड़ी की चोटी पर बैठा है। हमारी तीन यूनिट ने सामने हमला किया था, तीनों ही कामयाब नहीं हुई थी। मेरा प्लान दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देने का है। जिसका मतलब पहाड़ी के पीछे की तरफ से चढ़ाई करके उन पर हमला करने का है। आर्मी चीफ को मेरा प्लान सबसे सटीक लगा। उन्होंने 2 राजपूताना राइफल्स बटालियन के सीओ कमांडर कर्नल रविन्द्र नाथ को कहा कि दिगेन्द्र सिंह के प्लान पर काम किया जाए। ऑपरेशन के लिए 2 राजपूताना राइफल्स के सबसे खतरनाक 10 कमांडो दिगेंद्र सिंह समेत मेजर विवेक गुप्त, सुबेदार भंवरलाल भाकर, सुमेर सिंह राठौड़, सीएचएम यशबीर सिंह, हवलदार सुल्तान सिंह, नायक सुरेंद्र, नायक चमन, लांस नायक बच्चन सिंह, राइफलमैन जसवीर सिंह की एक टीम बनाई गई थी। जिसके बाद सभी कमांडो द्रास सेक्टर में दुश्मन से लड़ते-लड़ते सप्ताहभर बाद तोलोलिंग पहाड़ी की पीछे की तरफ पहुंचे थे। 9 जून के दिन 10 कमांडो तोलोलिंग की पहाड़ी पर बनी पाकिस्तानी चैक पोस्ट के नीचे थे। जहां से पोस्ट की दूरी सिर्फ 90 मीटर थी। जिसके बाद जवानों ने नीचे सबसे पहले फायर बेस तैयार किया। फिर जवानों ने तोलोलिंग की दुर्गम पहाड़ी में क्लिप ठोक-ठोककर 14 घंटे की मशक्कत के बाद तोलोलिंग की चोटी तक रस्सा बांध दिया था। दुश्मनों को सामने से चार्ली कम्पनी और डेल्टा कम्पनी के जवानों ने फायरिंग करके उलझाए रखा था। ताकि उनका पीछे की तरफ से जारी ऑपरेशन पर ध्यान ना जाए। वहीं ऑपरेशन के लिए हर एक कमांडो अन्य हथियारों के अलावा 10 से 20 ग्रेनेड भी अपने साथ लेकर आया था। 12 जून की रात साढ़े 8 बजे सभी 10 भारतीय कमांडो तोलोलिंग की पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे थे।

जिसके बाद कमांडो दिगेंद्र सिंह ने दुश्मन के बंकर के जहां से गन फायर होता है, वहां ग्रेनेड डालकर उसे तबाह कर दिया। हालांकि इस दौरान उनके सीने में तीन, अंगूठे और पैर में एक-एक गोली लग गई थी। ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों की गोलीबारी का शिकार होकर रात तक 9 साथी कमांडो भी शहीद हो चुके थे। दिगेंद्र सिंह ने अकेले एक के एक करके उनके कई बंकर ध्वस्त कर दिए थे। 13 जून की सुबह करीब 4 बजे तोलोलिंग की चोटी पर दोनों तरफ से भारतीय सेना के अन्य जवान भी पहुंच गए थे। जिसके बाद सुबह साढ़े पांच बजे तोलोलिंग की पहाड़ी पर भारतीय सेना ने तिरंगा फहराया था। भारत-पाकिस्तान कारगिल युद्ध की यह सबसे पहली जीत थी।






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सोर्स : Jk Now

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