कानों में है झुमका तेरे ,भाल पर सुन्दर टीका,
,इस सुन्दरता के आगे है ,सबकुछ लगता फीका ,
भौहें भी प्रत्यंचा सी हैं ,रूप का बाण चलातीं ,
भावुक जन यहाँ जितने ,उनको मुग्ध ,मुग्ध कर जातीँ ।
कजरारी आंखों की शोभा ,अनुपम बहुत निराली ,
सुन्दर गोरी तुम लगती हो सचमुच में मतवाली ।
अधर तुम्हारे सुन्दर ,सुन्दर ,मन्द ,मन्द मुस्काते ,
सत्य कहूँ तो मान लो गोरी ,आकर्षित
कर जाते।
लाल ,लाल हैं ,गाल तुम्हारे ,मधुमय ,मधुमय लगते ,
प्रेमी जन को आकर्षित कर , तुष्ट बहुत हो जाते ।
ग्रीवा भी अति सुन्दर दिखती ,अति पतली वो लगती ,
तेरे मुखडे की शोभा को वो ,सचमुच द्विगुणित करती ।
कन्धे पर आश्रित जो साडी ,,सुन्दर ,सुन्दर लगती ।

सत्य कहूं तो मान लो गोरी ,अनुपम ,अनुपम लगती ।
गोल, गोल वक्षस्थल तेरे ,सुन्दर ,सुन्दर दिखते ,
उनके मध्य जो तंग गली है ,उसको भावुक लखते ।
अर्ध खुली जो कटि है तेरी ,केहरि कटि सी लगती ,
चाल बहुत मतवाली तेरी ,तुम गजगामिनी लगती ।
जांघ बहुत ही सुन्दर ,सुन्दर ,अति सुन्दर दिख जाती ,
प्रेमी जन यहाँ जितने उनको,घायल ही कर जाती।
सत्य कहूं तो मान लो गोरी ,तुम हो रूप की रानी ।
सबको घायल कर देने की ,तुमने जिद है ठानी ।
कितना कहूँ ,कहूँ मैं कितना ,सोच नहीं पाता हूं ,
सर से लेकर पांव के नख तक ,तुमको अनुपम पाता हूं ।
प्रो उमेश नंदन सिन्हा ,सेवा निवृत प्राचार्य एवं अध्यक्ष ,हिंदी विभाग