2 तिहाई बहुमत नहीं जुटा पाने में असफल हुए प्रधान ओली
राजेश दुबे
नेपाल और भारत के बीच जारी गतिरोध पर विराम लगता नजर आ रहा है । मालूम हो कि नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने नक्से में शामिल किया था जिसके बाद नेपाल के साथ वर्षों पुरानी दोस्ती पर प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे थे । हालाकि यह सभी जानते थे कि यह चीन की करतूत है और कोरोना से ध्यान भटकाने और चाइनीज वायरस के बाद चीन से विदेशी कंपनियों का मोहभंग होने के बाद चीन के द्वारा ही नेपाल को आगे कर खेल खेला जा रहा था ।मालूम हो कि नेपाल में जबसे सत्ता का हस्तांतरण हुआ और वामपंथियों के हाथो में सत्ता की बागडोर गई तब से ही नेपाल की राजनीति चीन के इर्द गिर्द ही घूमती रही है ।हालाकि नेपाल के नागरिक हमेशा भारत के पक्ष में ही रहे है और भारत ने भी हमेशा नेपाल को अपना छोटा भाई समझ कर ही उसके दुख दर्द में मदद करता रहा ।
विवाद कब आरम्भ हुआ ।
8 मई को भारत ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भक्तो कि कठिनाई को देखते हुए लिपुलेख धारचूला को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन किया था जिससे की कैलाश मानसरोवर यात्रा की दूरी कम हो गई है ।उद्घाटन के बाद नेपाल ने आनन फानन में 18 मई को नया नक्सा जारी कर दिया ,यही नहीं 22 मई को संसद में प्रस्ताव भी ले आया गया ताकि नक्शे को सामिल किया जा सके ।

लेकिन अब नेपाल में नए नक्शे को संविधान में शामिल करने के प्रस्ताव पर चर्चा टल चुकी है ।जानकारी के मुताबिक संसद में चर्चा के लिए जरूरी वोट हासिल नहीं हो पाया और सभी पार्टियां एक जुट नहीं हो पाई है । वहीं पूरे घटना क्रम पर भारत सरकार की पैनी नजर थी और सरकार के द्वारा किसी भी स्थिति से निपटने हेतु तैयार थी । भारत सरकार हमेशा पड़ोसियों से अच्छा संबध रखना चाहता है ।लेकिन कोई भारतीय अस्मिता को चुनौती दे उसे भी बर्दास्त नहीं करेगी यह भारत ने कई बार दिखा दिया है ।
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