खोरीबाड़ी /चंदन मंडल
खोरीबाड़ी में किसानों का रुझान मक्के की खेती की ओर काफी बढ़ रहा है . वहीं कभी जूट( पाट) की खेती करने वाले किसान अब जूट की खेती से विमुख हो रहे हैं तो किसानों का रुझान मक्के की फसल की ओर बढ़ रहा है. इसका मुख्य कारण जूट की खेती में समय , रुपये मेहनत ज्यादे लगने के बावजूद उचित मूल्य नहीं मिल पाना है.
वहीं मक्के की खेती में लागत समय मेहनत कम होने के बावजूद रुपये की आमदनी ज्यादे होती है. इस संबंध में सरकारी आंकड़े की बात करें तो खोरीबाड़ी प्रखंड किसान अध्यक्ष सत्त कुमार सिंह बतातें हैं कि सीमावर्ती क्षेत्र में विगत पांच वर्षों से किसानों का रुझान मक्के की खेती की ओर काफी बढ़ गया है .वहीं धीरे – धीरे क्षेत्र से जूट की खेती से किसानों का रुझान कम हुआ है.
किसान अध्यक्ष श्री सत्त कुमार सिंह ने बताया कि पांच वर्ष पूर्व खोरीबाड़ी में 400 एकड़ में जुट की खेती की जाती थी परंतु अब घटकर 50 एकड़ में सिमट गई .ठीक इसके विपरीत आज से पांच वर्ष पूर्व सीमावर्ती क्षेत्र में किसानों द्वारा 50 से 60 एकड़ मक्के की खेती की गई.यह बढ़ते -बढ़ते वर्तमान समय में मक्के की खेती खोरीबाड़ी क्षेत्र में बढ़कर लगभग 700 एकड़ में फैल गई है.
सत्त कुमार सिंह ने बताया कि सिर्फ 700 एकड़ ही नहीं गेंहू की खेती के बदले भी क्षेत्र के किसान मक्के की खेती की ओर अपना रुख कर रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जूट की खेती में किसानों को ज्यादा खर्च और ज्यादे मेहनत के बाद भी उचित मूल्य नहीं मिल पाता था.वहीं मक्के की खेती में कम मेहनत और कम लागत के बावजूद एवं अच्छे मुनाफे के कारण किसान जूट और गेहूं की खेती छोड़ मक्के की खेती की ओर अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इस संबंध में कई किसानों ने बताया कि जूट की खेती घाटे की खेती है .जूट में लागत अधिक और आय बहुत कम है सबसे बड़ी समस्या तो मजदूरों का है .एक एकड़ पाट तैयार करने तक 40 से 50 मजदूरों तक आवश्यकता होती है. इसके बावजूद हमलोगों को ज्यादे लाभ नहीं मिल पाता था इसलिए हमलोग जूट की खेती छोड़ कम मेहनत और कम लागत एवं अच्छे मुनाफे की मक्के की खेती कर रहे हैं.