मधुबाला मौर्या
आज सुबह एक मित्र का फ़ोन आया और प्रवासी मज़दूरों की दुख भरी बातों पर चर्चा चलने लगी इसी क्रम में कई लोग जुड़ गए तब मैंने भी एक राय दी की यदि हम भी चाहे तो अपने स्तर पर छोटी ही सही एक प्रयास कर सकते है सबने बोला हां -हां क्यों नहीं आखिर हमारी भी तो समाज के प्रति कुछ उत्तरदायित्व है तब मैंने कहा अपने आस पास जितने भी मज़दूर या गरीब तबके के लोग दिखे एक महीने का कम से कम राशन पानी देने चलते है शुरुआत हमेशा मुश्किलों से भरा होता है किन्तु आगे बढ़ते -बढ़ते आसान लगने लगता है तो क्यों न कल से शुरुआत करें अपना यह दांडी यात्रा इस कोरोना के खिलाफ ?
सबने खूब वाह वाही लगायी दूसरे दिन करने के समय सबको सर्दी- जुखाम -खाशी- बुखार हो गया ,खैर छोड़िये ये तो होता है दूर के ढोल सुहाने ही होते हैं ।
परन्तु, मैं सोच रही हूं की अगर पांच -छ महीने इस कोरोना के मार से हम मध्यमवर्गी परिवारों का हाल खस्ता होता जा रहा तो उन गरीब मज़दूरों का क्या हो रहा होगा जो कि :
१. फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूर
२. ठेले वाले
३. रिक्शा ,ऑटो चालक
४. दूसरे के घरो में काम करने वाले नौकर
५. दुकानदारों की रोजी रोटी
इन लोगों की रोजी रोटी कैसे चल रही होगी क्या केवल सरकार द्वारा मुफ्त अनाज ही इनकी ज़रूरतें है?
हाल में ऐसी कई घटनाये सामने आयी जो दिल को दहला देने वाली है :
१. सरकार ने पुरे देश में बंदी की घोषणा कर दी बिना किसी पूर्व नियोजित सोच के जिससे दूसरे राज्यों में फँसे प्रवासी मज़दूरों की सरकार क्या राज्य सरकार तक ने प्रवासी मज़दूरों को दूसरे राज्य से आये मज़दूरों को अंदर घुसने नहीं दिया कई दिनों तक गरीब मज़दूर रेलवे स्टेशन पर अपने दिन काटे ,
२. ऊपर से मकान मालिकों की तानाशाही रोजी हैं नहीं लेकिन किराया हर महीने के महिने चाहिए ,अरे गरीब मज़दूर रोज का कमाने वाला कहा से किराया देगा जब देश में बंदी है तो ?
३. एक माँ का बेटा ७०० किलोमीटर फसा हुआ था कोई खबर लेने वाला नहीं तब माँ खुद स्कूटी चला के बेटे को लेने गयी सबने बड़ी तालियाँ बजायी बजाए खड़े होने के
४. ट्रक से भरे २४ मज़दूरों की मौत हो गयी जिसमें सात बोकारो के रहने वाले थे जो ट्रक में बैठ कर अपने घरो को जा रहे थे उनकी जान की क्या कोई कीमत नहीं ?
५. सरकारी महकमों के कर्मचारियों को सरकार वेतन भुगतान कर रही लेकिन प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों की छटनी ,वेतन में कटौती का किसी ने संज्ञान नहीं लिया
६.ज़्यादातर बुद्धिजीवी सरकार को कसूरवार ठहरा के अपना उत्तरदायित्व निभाते है अगर कह दो की जमीनी स्तर पर उतरिये तो सर्दी -जुखाम -खाशी -बुखार से संक्रमित होकर छुट्टी पर चले जाते है ।
लेखिका का परिचय : मधुबाला मौर्या
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिक्षा विभाग