कुमार राहुल
“एक भी टिकुलिया (किशोरी) छोरी क नै छोड़ बह”।ऐसी भाषा का प्रयोग तत्कालीन मुखिया अपने कार्यकाल में लगातार करते आए हैं। काझा गणेशपुर (जिला पूर्णिया) के मुखिया सतीश की बोली की सच्चाई ,वर्ष 2005 दिवाली मेले में गुड़िया के बलात्कार के साथ उजागर हो गई! सवर्णों की बस्ती में लगे मेले को देखने आई, गुड़िया के साथ उनकी दो और सहेलियों का बलात्कार मुखिया सहित तीन और लड़कों ने किया! हर बार की तरह बलात्कार की बात ,इस बार भी अपने राजनैतिक ,muscles,पैसे एवं जातीय प्रभाव से दबाने की पुरजोर कोशिश हुई।
गुड़िया गैंगरेप की मानसिक पीड़ा को सह ना सकी और उनके प्राण पखेरू उड़ गये। टीवी न्यूज़ के एक रिपोर्टर ने इस खबर की जबरदस्त कवरेज एंड रिर्पोटिंग की। लेकिन f.i.r. में गुड़िया की मौत का जिम्मेदार राजेश उरांव को बता दिया गया ।क्योंकि सदियों से गुलामी करते आ रहे काझा गणेश पुर के आदिवासी लोगों में राजेश पहला मैट्रिक पास लड़का था।
गणेशपुर जहां सवर्णों की बस्ती तक पक्की सड़क सड़क थी ।उसके बाद आदिवासियों की झोपड़ियां, इसलिए सरकार ने भी कभी वहां पक्की सड़क बनाने की कोशिश नहीं की। सवर्णों के अधिकतर मनचले नौजवान आदिवासियों के 14 -15 साल की लड़कियों को टिकुलिया( अपरिपक्व आम) छोरी ही कहते हैं ।बलात्कार कोई और करता लेकिन जेल आदिवासी लड़कों को ही जाना पड़ता ।राजेश को भी लगभग 1 साल तक कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़े ।असली मुजरिम सलाखों के पीछे गए ,तब जाकर राजेश बेकसूर साबित हुआ।
लेकिन पढ़ने में कुशाग्र राजेश ने पढ़ाई छोड़ दी। दिल्ली जाकर कमाने खाने लगा। न जाने ऐसे कितने राजेश दमन का शिकार हो चुके हैं। मेधावी होते हुए भी मजदूरी करना पड़ रहा है ।काझा गणेश पुर की घटना तो बस एक उदाहरण भर है ,देश में अधिकतर जगह ऐसी स्थिति है ।इसीलिए रमन कुमार पूर्व चीफ मिनिस्टर छत्तीसगढ़ और गया के कुछ former MP ने कहा था,कि भारत में जहां भी नक्सल का प्रभाव है, इसके जिम्मेदार हम लोग खुद हैं,कयों कि हमने कभी विकास पिछड़ी जातियों तक पहुंचे ही नहीं दिया, ना ही उन्हें सही अवसर दिया ,कि वे लोग अपनी जिंदगी को संवार सकें । लेकिन अब समय बदलनें लगा हैं।
काझा गणेशपुर से महज 10 किलोमीटर की दूरी में स्थित कसबा प्रखंड के दीपक कुमार ने आर्थिक संकट से जूझते हुए ,सिर्फ और सिर्फ मेहनत के बल पर आईएएस की परीक्षा में 684 स्थान प्राप्त किया है ।दीपक के पिता आज भी लोगों के लिए जूते बनाते हैं ।पूर्णिया जिले के पहले IAS Abhas chatterji रहे हैं।
काफी अरसे बाद यह मौका आया है ,जब एक अनुसूचित जाति के युवक ने आईएस में पूर्णिया को represent किया है ।दीपक सभी नौजवानों के लिए एक प्रेरक उदाहरण है। मुश्किलें कितनी भी आए दृढ इच्छाशक्ति और लगन, मेहनत से सभी बाधाओं को पार कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया जा सकता है। ऐसा ही उदाहरण किशनगंज जिले के अनिल बोसाक ने भी प्रस्तुत किया हैं ।
पिता फेरी कर कपड़े बेचते रहे हैं। जीरन शिऋण
मकान, खस्ता माली हालत, लेकिन कुछ करने की इच्छा शक्ति से अनिल बोसाक ने पहले Delhi से IIT complete किया, फिर IAS मे 616 rank पाया। जिस मलीन ता’तीबस्ती में लोग घुसने से कतराते थे ,आज उसी बस्ती के अनिल बोसाक का नाम सबके जुबां पर है, क्योंकि किशनगंज को भी इस बार के आईएएस परीक्षा में अनिल बोसाक ने represent
किया है, जो कि अनुसूचित जाति से आते हैं ।
राम मनोहर लोहिया ने कहा था, पहले सवर्ण सत्ता में होंगे ,फिर बैकवर्ड क्लास सत्ता में आएंगे ,फिर अनुसूचित जातियां सत्ता में आएगी ।भारत के प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद, लेफ्टिनेंट गवर्नर ऑफ जैन jammu and kashmir अब सीएजी के प्रमुख जी.सी मुरमू है! डॉ उदित राज पूर्व लोकसभा मेंबर के अनुसार सिविल सर्विसेज एग्जाम 2020 में आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को मुख्य परीक्षा में 696 नंबर है ,वही ओबीसी को 718 ,शेड्यूल कास्ट का 706, और शेड्यूल ट्राइब का 699 नंबर है ,इसका मतलब है कि अब शेड्यूल कास्ट शेड्यूल ट्राइब भी पूरी तरह से मेन स्ट्रीम परीक्षा में लोगों को टक्कर देने की स्थिति में है !
यानी राम मनोहर लोहिया की बातें चरितार्थ होती दिख रही है। नए जमाने के पिछड़े अनुसूचित जाति के युवा मेहनत के बल पर आगे बढ़ते हुए शायद ऐसा कह रहे हैं ,कि जिंदगी …।आ रहा हूं मैं।