नारी /निधि चौधरी

बेहतर न्यूज अनुभव के लिए एप डाउनलोड करें

कविता

छंदमुक्त रचना

नारी
“””””””
मैं नारी को….
पीड़ा के समानार्थी पढूं,
तो चलेगा क्या?

जहां नारी हो….
पीड़ा पहुँच ही जाती है।
और जहाँ पीड़ा हो,
वहाँ दवा बन जाती है नारी।

एक पत्थर पर….
छेनी के वार से एक नारी गढूं
तो चलेगा क्या?

छेनी के प्रहार सह कर ही तो
पलती है नारी।
सहने पड़ते है ये प्रहार
अंतिम साँसों तक।

मैं नारी को….
एक मशीन कहूँ
तो चलेगा क्या?

मशीन ही तो है नारी,
सुबह तुम्हे जगाने से लेकर,
रात को तुम्हारे नींद आने तक।
और तुम्हारे स्टोर रूम से लेकर
तुम्हारे सिरहाने तक।

मैं नारी को…..
मध्यम सा संगीत कह दूं,
तो चलेगा क्या?

एक नारी की उपस्थिति,
तुम्हे ठीक ऐसा ही तो सुकूँ देती है।
जैसे हवाओं के संग बह कर,
फूल खुशबू देती है।

मैं नारी को…
खिलौने वाली गुड़िया कह दूं
तो चलेगा क्या?

गुड़िया ही तो है जिसे अपने हिसाब से
लिबास पहनाते हो तुम।
और अपनी चाबी से ही घुमाते हो तुम।

मैं नारी को….
मौन कह दूं
तो चलेगा क्या?

हाँ सदियों से मौन ही तो है,
तुझे आँचल में दूध पिलाने से लेकर,
तेरे द्वारा नथुनी से नाथ देने पर भी मौन।

अच्छा सुनो मैं नारी को….
महिषासुर मर्दनी कह दूँ
तो चलेगा क्या?

हाँ मैं ही तो हूँ जिनके चरणों में तुम
नित शीश झुकाते हो,
पहचानो मुझे, और मेरे अस्तित्व को,
जिसे तुम रोज झुकाते हो।
जिसे तुम रोज झुकाते हो।

निधि चौधरी
चित्र – गूगल साभार

नारी /निधि चौधरी