आयुर्वेद बनाम एलोपैथी : अकड़ूमलों की सनक’-कमलेश कमल

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आप संकुचित सोच के हैं, स्वतंत्र सोच विकसित ही नहीं कर सके हैं– यदि विरोध या तुलना में सोचते हैं। यह ‘बनाम’ नहीं ‘सहकार’ की बात है।

अगर आपके आँखों पर किसी ख़ास रंग का चश्मा है, तो आपको सब कुछ उसी रंग का दिखता है। आप इतनी सी बात क्यों नहीं समझते कि आयुर्वेद एक जीवन-दर्शन है, जीवन पद्धति है।
एलोपैथी को ऐसे समझें कि आधुनिक समय में जब रोग जटिल हो रहे हैं, तब इमरजेंसी में या शल्यक्रिया में इसका ही सहारा है।

हाँ, आयुर्वेद के अनुसार चलेंगे तो बहुत संभव है कि एलोपैथी के पास न के बराबर जाना पड़े। दोनों का लाभ लें! आयुर्वेद के अनुसार चलें लेकिन आज के समय में गंभीर बीमारी अगर पकड़ ही ले, तब एलोपैथी की शरण जाने में हिचकें नहीं। इसमें कोई कम या ज़्यादा नहीं है। आयुर्वेद ही क्यों होमियोपैथी है, युनानी है, सिद्धा है, नेचरोपैथी है…सबके अपने लाभ हैं, सबका अपना वैशिष्ट्य है। किसीको हीन या तुच्छ मानना संकुचित मानसिकता है।

यह मानिए कि भारतीय आयुर्वेद में संपूर्ण आरोग्य हेतु सब कुछ है, आप बीमार न पड़ें इसकी भी व्यवस्था है और अगर बीमार पड़ गए तो उसकी भी। लेकिन आधुनिक समय में कितने लोग पूरी तरह आयुर्वेद के अनुसार पथ्य से रहते हैं, शुद्ध भोजन करते हैं और योग आदि करते हैं? ऐसे में अगर बीमारी पकड़े तो एलोपैथी की जाँच या आवश्यक इलाज लेने में दिक्कत क्या है?






जो आयुर्वेद पर उँगली उठा रहे हैं, उनके व्यावसायिक हित हैं…आप तो मत उछलिए। बाबा रामदेव अगर आपको कम क़ीमत पर रोगप्रतिरोधक दवाइयाँ दे रहे हैं, योग सिखा रहे हैं तो लाभ उठाइए… बस। अब वे अगर एलोपैथी पर कुछ प्रश्न उठा रहे हैं, तो उस पर तार्किक ढंग से सोचिए लेकिन अंधभक्ति करने की आवश्यकता नहीं है। कुछ सवाल उनकी पद्धति पर भी उठ ही सकते हैं।

इसी तरह जो उनकी पद्धति पर सवाल खड़ा कर रहे हैं वे क्या कहेंगे जब लाखों ख़र्च के बावजूद ICU में भी लोग दम तोड़ते हैं। यह नहीं कि यह उनकी कमी है, लेकिन यह अवश्य है कि उनकी भी सीमा है….ठीक ऐसे जैसे आयुर्वेद की सीमा है। अभी भगवान् न करे लेकिन अगर किसी आयुर्वेद के प्रशंसक के साथ कोई सड़क दुर्घटना हो जाए, शल्यक्रिया हेतु तो एलोपैथी में जाना पड़ेगा। इसी तरह तथ्य है बड़े से बड़े डॉक्टर्स आयुर्वेदिक जीवन पद्धति और आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन करते हैं। eno से लेकर लिव-52 तक आयुर्वेदिक है।

तो बनाम की जगह सहकार में सोचना होगा। बनाम करने वाला मन बड़ा उपद्रवी होता है। इससे बचने की आवश्यकता है।

कमलेश कमल जी के फेसबुक वॉल से






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